Munshi Premchand ki Short Kahani in Hindi | मुंशी प्रेमचंद की कहानियां इन हिंदी

Munshi Premchand ki Short Kahani — पंच परमेश्वर — किसी गांव में दो दोस्त रहते थे। उनका नाम जावेद शेख और अनील चौधरी था। इन दोस्तों का धर्म भले ही अलग था। पर इनकी दोस्ती बचपन से थी। गांव के सभी लोग इनकी दोस्ती का मिशाल देते थे।
जावेद शेख की एक खाला (मौसी) थीं। जिनका जावेद के अलावा परिवार में और कोई ना था। वह जावेद के साथ ही रहती थी।
पहले-पहल तो खाला को जावेद की पत्नी खुब आवभग करती थी। मगर जब से खाला से जावेद ने जायदाद अपने नाम लिखवा ली, तब से खाला को रोटी के साथ दो कड़वी बातों के तीखे उलाहना भी देने लगी थी।
कुछ समय तक खाला सहती रहीं पर जब बर्दास्त से बाहर हो गया तो खाला ने पंचायत बिठाने का निर्णय लिया।
झुकी हुई पीठ को लेकर जैसे तेसे खाला गांव के पंचायत के पास अपनी गुहार लेकर गयी। पूरे गांव को पंचायत का न्यौता दिया था। अनील चौधरी को उसने विशेष रूप से बुलाया था। सभी एक पेड़ के नीचे एकत्रित हुए।
पंचायत का कार्य पूरा हुआ। पंचों के सामने खाला ने अपना पक्ष रखा। मैने अपनी सारी जायदाद तीन साल पहले जावेद के नाम कर दी। जीवन भर रोटी कपड़ा देने के लिए इसने कबूल किया था। रोज-रोज की किट-किट मुझसे सही नहीं जा रही। ना तो पेट भर भोजन और ना ही तन का कपड़ा देता है। मुझे अब आप पंचों की सहारा चाहिए।
कहा जाता है कि पंच में परमेश्वर का वास होता है। मेरा न्याय किया जाए। पंच में अनिल चौधरी भी शामिल था। न्याय का न मित्र होता है और ना ही दुश्मन। यही स्थिती अनील चौधरी के साथ हुआ था। जावेद उनका मित्र था। उसके लिए फैसला लेना थोड़ा मुश्किल था।
अनील चौधरी ने जावेद को कहा, तुम महीने का खर्च दे दो अगर तुम खाला की देखभाल नहीं कर सकते तो। उनकी जो भी जायदाद है। उसका पैसा जो भी बनता है। महीने भर की जो खाला के खर्च बनता है। बस उतना ही खाला किसी को उन्हीं पैसे से अपनी देख भाल के लिए कोई गांव की महिला रख लेगीं।
यदि तुम उनका खर्च ना दे सको तो उनकी जायदाद उन्हें वापस कर दी जाए। फैसला सुनते ही जावेद सकते में आ गया।
मित्रता की जड़ें मानों हिल गई। जावेद मन-ही-मन अनील चौधरी से बदला लेने की सोचने लगा।
पंचो ने अनिल चोधरी के फैसलो को सहमती दे दी। अब जावेद को भी पंच की बात माननी पड़ी। दुसरे दिन अनील चौधरी अब जावेद से मिलने गए तो वह कुछ भी बात करने से मना कर दिया। अनिल चौधरी को लगा जावेद अभी नाराज है थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।
अनील चौधरी के पास बहुत ही सुंदर बड़ी-बड़ी सींगों वाले एक जोड़ा बैल थे। देवयोग से एक बैल पंचायत के महीने भर बाद ही मर गया। अकेला बैल किस काम था?
बैल का जोड़ा ढूढ़ने के बाद भी अनील चौधरी को उस जैसा बैल ना मिला तो उसने सोचा क्यों ना मैं इस बैल को भी बैच दूं और शहर जाकर दूसरा दो बैंल खरीद ले आउंगा। उसने अपना बैल गांव के समीप ही साहूकार से बेचना उचित समझा।
साहूकार के पास बैलगाड़ी थी जिसमें साहूकार सामान बाजार लाना और ले जाने का काम किया करता था। उसने वह बैल अनील चौधरी से अच्छे कीमत पर खरीदने की बात तय हुआ। लेकिन साहूकार ने अनील चौधरी को पैसे देने के लिए एक महीने बाद का वक्त दिया। अनील चौधरी राजी हो गया। अपनी बैल साहूकार को देकर अपना घर चला गया।
बैल बहुत ही लम्बा और उसका बदन गठीला था। साहूकार उस बैल को लेकर बहुत खुश हुआ। साहूकार उस बैल को उस वक्त से ही काम पर लगा दिया। उसपर गांव का सामान गुड़-घी मंडी ले जाते थे और मंडी से नमक तेल लाकर गांव में बेचते थे।
साहूकार बैल को दिन में तीन-तीन, चार-चार चक्कर कराने लगा। उन्हें ना तो चारे की फिक्र थी, ना पानी और यदि बैल का दम फूलता तो आनाकानी करने पर बैल को डण्डों की बरसात भी झेलता पड़ता था।
कुछ ही दिनों में उसकी हड्डियां निकल आई थी। बैल का एक दिन चौथा चक्कर था। साहूकारी ने बैल पर दुगना बोझ लाद दिया। दिन भर का थका हारा, बैल का पैर ना उठ रहा था। साहूकार कोड़े फटकारने लगे। दम लगाकर बेचारा भागा, पैर लड़खड़ाए, बैल जो गिरा तो उठ ना पाया। साहूकार ने टांगा खींचा, लकड़ी ठूंसी मगर सब बेकार था। बैल मर चूका था।
दूर-दूर तक सन्नाटा, सामान लेकर घर कैसे जाए चिंतित साहूकार रात को वही रूकने का फैसला किया। साहूकार को रात में आंख लग गई, सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा उसके पैसे और टांगे पर लदा सामान भी गायब था।
साहूकार अपना सीर पीटा और सुबह अपना घर वापस आ गया। कई महीने बीतने के बाद भी साहूकार ने अनील चौधरी को उसके बैल पैसे नही दिए और जब भी पैसे की बात होती तो दोनों खुब झगड़ते। गांव वालो ने दोनो को पंचायत करने का सलाह दी ।
पंच चूनने का फैसला किया गया अनिल चौधरी ने कहा साहूकार को ही पंच चुन लेने को कहो, मुझे पंच के फैसले पर भरोसा है।
साहूकार ने अकड़कर कहा- जावेद शेख मेरी ओर से जावेद का नाम सुनते ही अनील चौधरी का दिल ही बैठ गया। जावेद ने स्वीकृति दे दी और जावेद सरपंच नियुक्त हो गए।
बदले की आग में जावेद ने जब सरपंच का उच्च पद को संभाला तो उसे ऐहसास हुआ। जिसके बाद उसको अपने दायित्व का ज्ञान हो गया। उसके सामने केवल न्याय था। दोनों पक्षों का से सवाल-जवाब करने के बाद फैसला सुनाया।
अच्छी तरह विचार कर पंच इस फैसले पर पहुंची है कि साहूकार को बैल का पूरा दाम देना चाहिए। जिस समय बैल लिया गया था उस समय उसे कोई बीमारी न थी। तभी दाम दे दिया जाता तो आज यह विवाद ही नहीं होता। बैल की मृत्यु का कारण- उससे कठिन परिश्रम लिया जाना तथा उचित चारे-दाने का प्रबंध न किया जाने की वजह से हुआ है।
साहूकार को पंच की बात माननी पड़ी, थोड़ी देर बाद अनील चौधरी से मिलने उसके घर जावेद आया और उसे गले लगाकर अनील चौधरी से अपनी गलती की मांफी मांगी। उन दोनो के मन फिर से एक के प्रति साफ हो गया और उनकी दोस्ती फिर से बरकरार हो गयी।
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Originally published at https://www.hindichowk.com on January 13, 2022.